देर तक सोना अच्छा नहीं लगता,
मगर सोता हूं।
अक्सर जगे रहने से सोने की ख्वाहिश
होती है,
इसलिए बेवक्त भी सोता हूं।
नादानियों से ऊबकर कुछ चालाकियां की
मैने,
अब उन्हीं
चालाकियों पर रोता हूं।
जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद
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