खुद की तलाश में..........
वो मौज हो गई, मैं किनारा रहा।
दूर से ही सही पर सहारा रहा।।
हालातों का हरदम मैं मारा रहा।
खुद से न खुद का गवारा रहा।।
शिकवे शिकायत का अंत हो गया।
अब तो हर मौसम बसंत हो गया।।
धन्यवाद!
जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद
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