जुदा तो हो ही जाओगे।
होके जुदा बहुत रोओगे।
अभी टटोल रहे हो जख्म मेरा।
घर जाकर हाथ कई बार धोओगे।
जुदा तो हो ही जाओगे।
होके जुदा बहुत रोओगे।
अभी टटोल रहे हो जख्म मेरा।
घर जाकर हाथ कई बार धोओगे।
जा रहा था दूर, बुलाया गया।
इधर उधर की बातों में उलझाया गया।
भूलने के लायक नहीं था, भुलाया गया।
मरी थी देह, रूह जिंदा थी,
तब भी जलाया गया।
जुर्म इतना कि
कांटों में गुलाब था।
जमाने के अपने,
मेरा अपना हिसाब था।
चाहते हैं सब,
सलामत रहे सवाल उनका,
मैं सबका जबाब था।
क्या बताऊँ यारों,
ये किस्सा कितना लाजवाब था ।
देर तक सोना अच्छा नहीं लगता,
मगर सोता हूं।
अक्सर जगे रहने से सोने की ख्वाहिश
होती है,
इसलिए बेवक्त भी सोता हूं।
नादानियों से ऊबकर कुछ चालाकियां की
मैने,
अब उन्हीं
चालाकियों पर रोता हूं।
वो मौज हो गई, मैं किनारा
रहा।
दूर से ही सही पर सहारा रहा।।
हालातों का हरदम मैं मारा रहा।
खुद से न खुद का गवारा रहा।।
शिकवे शिकायत का अंत हो गया।
अब तो हर मौसम
बसंत हो गया।।
धन्यवाद!
जिस समंदर में डूबे है कई सारे,
वहां भी कितनों का बसेरा है।
समय है एक ही,
किसी की रात तो किसी का सवेरा है।
पर्दे हटा, खिड़की
तो खोल,
सूरज सर पर और तेरे घर में अंधेरा है।
दिल पे बोझ कैसा, आंखे नम क्यूं,
जी भर जी ले,
ना तेरा ना कुछ मेरा है।
धन्यवाद!
जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद