जय गुरुदेव,
एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और
केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है।
धन्यवाद
खुद की तलाश में..........
जय गुरुदेव,
एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और
केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है।
धन्यवाद
जुदा तो हो ही जाओगे।
होके जुदा बहुत रोओगे।
अभी टटोल रहे हो जख्म मेरा।
घर जाकर हाथ कई बार धोओगे।
जा रहा था दूर, बुलाया गया।
इधर उधर की बातों में उलझाया गया।
भूलने के लायक नहीं था, भुलाया गया।
मरी थी देह, रूह जिंदा थी,
तब भी जलाया गया।
जुर्म इतना कि
कांटों में गुलाब था।
जमाने के अपने,
मेरा अपना हिसाब था।
चाहते हैं सब,
सलामत रहे सवाल उनका,
मैं सबका जबाब था।
क्या बताऊँ यारों,
ये किस्सा कितना लाजवाब था ।
दूसरे की गलतियों को क्षोभपूर्ण व्यक्त करना नकारात्मकता है, इस
प्रक्रिया
में कहने वाले और सुनने वाले दोनों ही व्यथित हो जाते हैं।
दूसरे द्वारा अव्यवस्थित की गई चीज़ों को बिना उसे बताये व्यवस्थित
करना उत्तम, वैसे ही छोड़ देना मध्यम तथा क्षोभपूर्वक उसे व्यक्त
करना नीच भाव है।
सपनों के अभाव से उत्पन्न हुए खालीपन को सेक्स, सम्पत्ति, संगति
और/अथवा
शोहरत कदापि नहीं भर सकते।
देर तक सोना अच्छा नहीं लगता,
मगर सोता हूं।
अक्सर जगे रहने से सोने की ख्वाहिश
होती है,
इसलिए बेवक्त भी सोता हूं।
नादानियों से ऊबकर कुछ चालाकियां की
मैने,
अब उन्हीं
चालाकियों पर रोता हूं।
जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद