रविवार, 10 सितंबर 2023

इच्छाएँ

 

जय गुरुदेव,

एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और 

केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है।

धन्यवाद

जख्म मेरा

 

जुदा तो हो ही जाओगे।


होके जुदा बहुत रोओगे।

अभी टटोल रहे हो जख्म मेरा।

घर जाकर हाथ कई बार धोओगे।

लाजवाब

 

जा रहा था दूर, बुलाया गया।

इधर उधर की बातों में उलझाया गया।

भूलने के लायक नहीं था, भुलाया गया।

मरी थी देह, रूह जिंदा थी,

तब भी जलाया गया।

जुर्म इतना कि

कांटों में गुलाब था।

जमाने के अपने,

मेरा अपना हिसाब था।

चाहते हैं सब,

सलामत रहे सवाल उनका,

मैं सबका जबाब था।

क्या बताऊँ यारों,

ये किस्सा कितना लाजवाब था ।


प्रेम

प्रेम अकर्मक क्रिया है


दूसरे की गलतियां

 

 दूसरे की गलतियों को क्षोभपूर्ण व्यक्त करना नकारात्मकता है, इस 

प्रक्रिया में कहने वाले और सुनने वाले दोनों ही व्यथित हो जाते हैं।

दूसरे द्वारा अव्यवस्थित की गई चीज़ों को बिना उसे बताये व्यवस्थित 

करना उत्तम, वैसे ही छोड़ देना मध्यम तथा क्षोभपूर्वक उसे व्यक्त 

करना नीच भाव है।

खालीपन

 

सपनों के अभाव से उत्पन्न हुए खालीपन को सेक्स, सम्पत्ति, संगति 

और/अथवा शोहरत कदापि नहीं भर सकते।

चालाकियां

 

देर तक सोना अच्छा नहीं लगता,

मगर सोता हूं।

अक्सर जगे रहने से सोने की ख्वाहिश होती है,

इसलिए बेवक्त भी सोता हूं।

नादानियों से ऊबकर कुछ चालाकियां की मैने,

अब उन्हीं चालाकियों पर रोता हूं।

 

वो

 

वो मौज हो गई, मैं किनारा रहा।

दूर से ही सही पर सहारा रहा।।

हालातों का हरदम मैं मारा रहा।

खुद से न खुद का गवारा रहा।।

शिकवे शिकायत का अंत हो गया।

अब तो हर मौसम बसंत हो गया।।

धन्यवाद!

खिड़की तो खोल

 

जिस समंदर में डूबे है कई सारे,

वहां भी कितनों का बसेरा है।

समय है एक ही,

किसी की रात तो किसी का सवेरा है।

पर्दे हटा, खिड़की तो खोल,

सूरज सर पर और तेरे घर में अंधेरा है।

दिल पे बोझ कैसा, आंखे नम क्यूं,

जी भर जी ले, ना तेरा ना कुछ मेरा है।

धन्यवाद!


गुरू कृपा


 जिंदगी नदी गुरू नाव है।

जिंदगी धूप गुरू छांव है।।

शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

धर्म की राजनीति

किसी के ऊपर किसी के द्वारा असंगत रूप से अधिकार जमाने की कोशिश होती है तो उसे सामान्य बोलचाल में आक्रमण कहते हैं। वही इस आक्रमण से होने वाले नुकसान को संक्रमण कहा जाता है। वर्तमान में जिस तरह से राजनीति द्वारा धर्म पर अधिकार जमाने या धर्म को अपने ही तरीके से परोसने की कोशिश हो रही है उसे धर्म पर राजनीति का संक्रमण  कहा जा सकता है। यह संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है और यह धर्म को पूरी तरह से बीमार करने वाला है। राजनीतिक फायदे के लिए धर्म का प्रयोग कोई नई बात नहीं यह राजनीति के प्रारंभिक दौर से होते आ रहा धर्म हमेशा ही राजनीति के नेपथ्य में रहा। आज के दौर में विशेष कर भारत में राजनीति  धर्म के नेपथ्य में चली गई और  धर्म के कंधे पर बंदूक रखकर अपना निशाना साध रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में निशाने पर हमेशा ही आम जनता रहती है। लोक के लिए धर्म एक भावनात्मक पहलू है यहीं कारण  है कि लोक यानी जनता धर्म के नाम पर बहुत कुछ सहन कर सकती है।  राजनीति करने वाले भली भांति जानते हैं कि धर्म के आगे  विकास की राजनीति घुटने टेक देगी। परंतु इस खेल में धर्म का जो नुकसान होगा या कहें कि हो रहा है इसका आकलन शायद ही कोई कर रहा है।

 जिस तरह आजादी की लड़ाई में राजनीतिक नेतृत्व के अभाव में धार्मिक और दार्शनिक लोगों द्वारा नेतृत्व किया गया और उसका नतीजा है कि आज की राजनीति बिना पेंदी के लोटे की तरह मतलबवाद के इर्द गिर्द घूम रही है। ठीक उसी तरह वर्तमान में धर्म को बचाने का ठेका नेताओं द्वारा स्वतः ही ले ली गई है जबकि आध्यात्मिक धार्मिक लोग चुप हैं और हासिए पर चले गए  हैं इसका नतीजा किसी भी प्रकार से शुभ नहीं होने वाला।  सत्ता पाने के लिए जिस तरह से धर्म के अखाड़े में राजनीतिक लड़ाई लड़ी जा रही है इससे धर्म अपनी पहचान और आत्मा को खो देगा। 

धन्यवाद

राजीव रंजन चौधरी 


इच्छाएँ

  जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और  केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद