जा रहा था दूर, बुलाया गया।
इधर उधर की बातों में उलझाया गया।
भूलने के लायक नहीं था, भुलाया गया।
मरी थी देह, रूह जिंदा थी,
तब भी जलाया गया।
जुर्म इतना कि
कांटों में गुलाब था।
जमाने के अपने,
मेरा अपना हिसाब था।
चाहते हैं सब,
सलामत रहे सवाल उनका,
मैं सबका जबाब था।
क्या बताऊँ यारों,
ये किस्सा कितना लाजवाब था ।