बुधवार, 21 मार्च 2012

सवाल नियत का नहीं नियति का है.

राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन द्वारा भारत के कुल बज़ट का ७% सीधे पंचायतों को दिए जाने पर कुछ लोगों को आपत्ति है कि पंचायतों में मुखिया सारा धन हड़प जायेंगे क्योंकि अभी तक पंचायत स्तर पर सारे कार्यक्रमों में अधिकतर मुखियाओं द्वारा लूट का सिलसिला जारी है.   उनकी यह शंका जायज है, कारण की ऐसा ही हो रहा है.
      अब सवाल यह उठता है कि जब सब परेशान है,  तो किसी ईमानदार को क्यों नहीं चुना जाता.
अब तक चुन लिया जाता अगर ईमानदार की पहचान होती. ईमानदार और बेईमान की बिच वाली रेखा काल्पनिक है या गायब है. किधर जाएं उलझन है. बहुतों को देखा सब में एक बिमारी है, सरकारी रूपया देखकर नियत बदल जाती है. मगर नियत की क्या बिसात जब नियति ही गड़बड़ है.
   यह नियति  (माहौल ) रातों रात नहीं बदल सकती कारण कि यह रातों -रात नहीं बनी. है  नियति को इस तरह बिगाड़ने में  सबसे प्रमुख और प्रबल है व्यक्ति का अपने आप में सिमटना और समाज को दरकिनार करना. जब मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, तो विकास भी समाज में या समाज के साथ ही होगा.  एक -एक व्यक्ति के विकास कि जिम्मेवारी कोई सत्ता या व्यवस्था कभी नहीं ले सकती. किसी समाज का विकास तब तक नहीं. हो सकता जब तक उस समाज में रहने वाले लोग सामूहिक विकास के प्रति जागरूक और सतर्क न हों.
   सामाजिक व्यवस्था मुख्य रूप से अपने तीन उप - व्यवस्थाओं पर आधारित होता है. ये हैं-१.शिक्षा २.चिकित्सा  ३. सुरक्षा . इनमें से किसी कि व्यवस्था व्यक्ति स्वयं नहीं कर सकता, दूसरी तरफ व्यवस्था व्यक्ति के सहयोग के बिना इसे व्यवस्थित नहीं कर सकती.
      दुर्भाग्यवश वर्तमान में व्यक्ति औरों से आगे निकलने के होड़ में अपनी व्यवस्था  स्वयं करने कि कोशिश कर रहा है, तो व्यवस्था के संचालक इसका गलत फायदा उठाते हुए शिक्ष,चिकित्सा और सुरक्षा तीनों को कोठे पर बिठा दिया है. कोठे का धंधा हीं ऐसा है कि सब, सब तरह से बिकता है.
  फलस्वरूप, सव कुछ दाव पर है.
    ऐसे माहौल में देश के कुल बज़ट का ७% सीधे पंचायतों को देने, विकास कार्य कि मंजूरी ग्राम सभा द्वारा, कार्य निष्पादन पंचायत द्वारा करने का विचार उपयुक्त है .इससे लोगों में साथ बैठने कि प्रवृति का पुनर्जागरण  होगा तत्पश्चात विकास पर बहस तथा अंत में सम्पूर्ण विकास. सरकार पर लेखा-जोखा कि जिम्मेवारी इस विकास में भागीदारी का प्रतिक है.
   इस तरह,  इस मुद्दे को लागु करने का आन्दोलन सामाजिक पुनर्जागरण का आन्दोलन है ,
   अतः जन- जन से मेरा आग्रह है कि इस आन्दोलन को जन-जन तक पहुँचाने में अपना भरपूर सहयोग दें.



धन्यवाद

राजीव रंजन चौधरी


   

शनिवार, 17 मार्च 2012

अधूरे संवाद

       श्री गोविन्दाचार्य जी के नेतृत्व में पंचायतों  को भारत के कुल बजट का सीधे  ७% हिस्सा दिया जाए के मांग पर  जंतर - मंतर पर १२ ,१३ ,१४ मार्च को धरना- प्रदर्शन का  किया गया. मांग वाजिब और सटीक है. इसे लागु करने का तरीका  भी लिक से हटकर है कि 
ग्राम सभा  आम सहमती से विकास कार्यों को मंजूर करे तथा ग्राम पंचायत को कार्य निष्पादन कि जिम्मेवारी हो.
    देश भर से गोविन्द जी और राष्ट्रीय स्वाभिमान  आन्दोलन से जुड़े हुए लोग इस मुद्दे को अपना समर्थन और सहयोग देने के लिए जंतर मंतर पर पहुंचे .  यह मुद्दा पहली बार उठाया गया है
इसलिए यह तो शुरुआत है. इस मुद्दे  की मंजिल सरकार द्वारा पंचायत को धन देना नहीं बल्कि गाँवों द्वारा इसे स्वीकारना  और पूरी ताकत के साथ आवाज उठाना है. कारण कि जब तक गाँव अपने विकास  के बारे में खुद विचार और बहस नहीं करते तब तक इस विषय का मंथन नहीं होगा . भारत गांवों का देश है इसलिए गाँव की आवाज को कोई भी सरकार क्या, कोई भी व्यवस्था न तो नकार सकती है ना ही  दबा सकती है. 
    अब सबसे बड़ी चुनौती इस मुद्दे को सही सलामत गांवों तक पहुंचाना है. कभी - कभी कहने -सुनाने में मुद्दे भी भटक जाते हैं.  गांवों तक इसे पहुचने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण कार्यकर्ताओं और  वैसे लोगो की आवश्यकता है जो गाँव के मिजाज को अच्छी  तरह समझते है
 इसके लिए राष्ट्रिय स्वाभिमान आन्दोलन के नेतृत्व यानि गोविन्द जी और उनसे जुड़े लोगों तथा ग्रामीण कार्यकर्ताओं के बिच संवाद जरुरी है
   परन्तु जंतर-मंतर पर तीन दिवसीय धरना के दौरान बहुत से ऐसे लोग संवाद नहीं कर पाए जिनके विचारो की नितांत आवश्यकता है, जबकि ऐसे बहुत से लोग बोलते गए जिनका इस विषय से कोई लेना देना नहीं है. वे इसलिए बोलते गए क्योंकि वे गोविन्द जी से जुड़े लोगों से जुड़े हैं और वर्षों से ऐसे धरना  प्रदर्शनों में बोलते रहे हैं. ये किसी मुद्दे पर कुछ  समय तक  बोलने में समर्थ है. 
 ऐसे मौकों पर कौंग्रेस पार्टी  तथा सोनिया गाँधी को भला - बुरा कहना या बज़ट के ७% में से १०-१५% पहुचने की बात करना बेतुक तो था हीं साथ - साथ देश भर से आये लोगों की भावनाओं को  आहत करना था.
 संवाद सही मायनों में उचित विषय पर, उचित  व्यक्ति द्वारा, उचित समय पर, उचित शब्दों द्वारा, उचित व्यक्ति के साथ विचार विमर्श है.  इस दृष्टि से तीन दिवसीय धरना के दौरान संवाद अधुरा रहा . अधूरे संवाद से सहमती नहीं , जब सहमती नहीं तो सहकार काल्पनिक होता है.    
  अगर हालात ऐसे ही रहे तो राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन ऐसे अवसादों की वजह से अपने कार्यकर्ताओं, सहयोगियों तथा समर्थकों से संवाद नहीं कर पायेगा. जैसे पानी गर्म करने वाला छड अवसाद जमा हो जाने से अपना कम ठीक से नहीं कर पाता.

        अब चर्चा  इस बात पर होना चाहिए की इस मुद्दे  को गांवों तक कैसे पहुँचाया जाय ताकि यह मुद्दा दिल्ली का न रहकर गाँव का होकर पुरे जोश के साथ पुरे भारत में उभरे और भारत के विकास का नेतृत्त्व करे.


धन्यवाद

राजीव रंजन चौधरी

बुधवार, 17 अगस्त 2011

अन्ना की गिरफ्तारी और रिहाई 


कल का घटनाक्रम में अन्ना  की गिरफ्तारी कोई आश्चर्यजनक नहीं था. अगर कुछ आश्चर्यजनक था तो सत्ता के जोकों की घबराहट और व्यवस्था की चरमराहट . देर शाम अन्ना  की रिहाई की घोषणा की गयी . परन्तु अन्ना के जेल से बाहर तब तक न निकालने का फैसला जब तक उन्हें समर्थकों के साथ जे पी पार्क में अनशन करने की अनुमति न मिले. यह सत्ता को और मुश्किल में ड़ाल दिया है .
यह विचार अन्ना जैसे परिपक्व और जनता के विचारो के समझाने वाले व्यक्तित्व के मष्तिष्क में ही आ सकता है.



                             राजीव रंजन चौधरी

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

अब

बर्बादियों के घेरे से निकली हैं राहें ,
उम्मीदों के दर पे टिकी हैं निगाहें .
ओ खुद को खुदा समझने वाले ,
क्यों नहीं समझते, बेबसों की सिसकती आहें.
क्यों नहीं जाते , जहाँ राह देखती सुनी राहें.
जिन्हें तुने ठगा , यही हैं वो लोग सीधे  सादे,
भूल गए 5 साल पहले किये गए  अपने ही वादे.
भेड़िये आते है हर बार मुँह में तिनका दबाये,
दोनों हथेलिया सटा कर  विनम्रता से सिर झुकाए.
बड़े सादगी से झूठे वादों से लुभाने , 
हर  तरफ तूफां पे रेत के महल बनाने. 
अब समझ गए  हैं  तेरी उलझी  पहेली,
बैठ कर मलते रहो अब अपनी हथेली.  
भाग्यविधाता तू नहीं हम स्वयं रहेंगें,
अपने हाथों नव भारत का निर्माण करेंगे . 
                                     
                               ....... राजीव रंजन चौधरी

इच्छाएँ

  जय गुरुदेव , एक से अनेक होने की इच्छा से उत्पन्न जीवन में इच्छाएँ केवल और  केवल सतही हैं। गहरे तल पर जीवन इच्छा रहित है। धन्यवाद